जीवन की यात्रा कभी चढ़ाई है, कभी उतराई. हर्ष, विषाद, सफलता, असफलता, ये सब मिलकर हमारी गाथा लिखते हैं. लेकिन रास्ते में भटकने से बचाने, हर परिस्थिति में मजबूती देने के लिए हमारे पास भगवद् गीता का अनमोल ग्रंथ है. आइए आज जानें जीवन को जीने के वो 10 पाठ, जो गीता से सीख कर हम हर पल को बेफिक्र होकर जिएं:
1. कर्म करो, फल की चिंता मत करो:
“कर्मण्येवाधिकारे मास्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगः स्त्वकर्मणि।।” (गीता 2.47)
यह श्लोक हमें कर्म को कर्तव्य समझकर करने का सार बताता है. फल की चिंता करने से हमारा ध्यान भटकता है, इसलिए फल की इच्छा से मुक्त होकर कर्म करते रहना ही सफलता का मार्ग है.
2. धर्म ही विजय प्राप्त करेगा:
“यतो धर्मस्ततो जयः” (गीता 6.33)
जिस पक्ष में धर्म होता है, वही अंत में विजयी होता है. ये श्लोक हमें यह समझाता है कि सत्य, न्याय और ईमानदारी के रास्ते पर चलने से ही वास्तविक जीत मिलती है.
3. स्वधर्म में ही तृप्ति है:
“स्वकर्मणि कौशलं स्वर्गः स्वपरायणतापगः। त्यक्त्वा त्यक्त्वा फलानिश्वः तुष्टः कार्मफलात्मभः।।” (गीता 18.46)
अपने कर्म को निष्ठा से करते रहने में ही शांति और आत्म-संतोष मिलता है. दूसरों का अनुकरण करने या उनकी नकल करने से सिर्फ हताशा ही हाथ लगती है.
4. सब कुछ नश्वर है, मन को स्थिर रखो:
“वासांसि जीर्णानि यथा परित्यजति पुरानी चरितवानी नवानि ग्रहणाति नरोऽपरोऽपि तथैव देहानी त्यक्त्वा नवानि ग्रहीति मृत्युः।” (गीता 2.22)
जैसे पुराने वस्त्रों को छोड़ नया पहनता है, वैसे ही आत्मा शरीर त्यागकर नया ले लेती है. भौतिक जगत में सब कुछ परिवर्तनशील है, इसलिए मन को स्थिर रखकर कर्म करना चाहिए.
5. युद्ध से मत कतराओ, न्याय के लिए खड़े रहो:
“कर्मण्येवाधिकारे मास्ते मा ते सत्त्वगुणे कषायः।।” (गीता 2.47)
जिस कार्य को करना सही है, उससे पीछे न हटें. क्षत्रिय धर्म का दायित्व है कि वह अधर्म का नाश करे, इसलिए कर्मक्षेत्र में बिना डरे आगे बढ़ना चाहिए.
6. योग से परमात्मा का साक्षात्कार करो:
“योगस्थः कर्म कुरु कर्णः त्यक्त्वा सर्वपरिग्रहान्। शिवाशितशिवापीतस्वप्नवोधैर्मितमाचिनः।।” (गीता 3.24)
योग द्वारा मन को वश में करते हुए कर्म करना ही ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग है.
7. सभी प्राणियों के प्रति दया का भाव रखो:
“अहंकारं सर्वभूतानि वासुदेवे सर्वमिति। स्थित्वा ज्ञानदीप्तेन भूयोऽप्यं यति वार्ष्णः।।” (गीता 6.29)
हर प्राणी में परमात्मा का अंश देखना चाहिए. दया और करुणा ही जीवन का सर्वोच्च धर्म है.
8. संत से संग करो, ज्ञान प्राप्त करो:
“तद्विद्धिप्रपन्नमनसा युक्तो योगमाचरेत्। आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किञ्चिदसंशयः।।” (गीता 6.47)
भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि यदि तुम ज्ञान प्राप्त करना चाहते हो, तो संतों के संग करो. संतों के संपर्क में आने से मन शांत होता है और ज्ञान प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त होता है.
9. एकाग्रचित्त होकर कर्म करो:
“एकाग्रचित्तः सर्वत्र विजयं लभते।” (गीता 6.25)
एकाग्रचित्त होकर कर्म करने से सफलता मिलती है. मन को भटकने से रोककर कर्म पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.
10. कर्मफल से मुक्त रहो:
“कर्मण्येवाधिकारे मास्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगः स्त्वकर्मणि।।” (गीता 2.47)
कर्मफल की चिंता करने से मन भटकता है. इसलिए फल की इच्छा से मुक्त होकर कर्म करना चाहिए.
ये तो थे भगवद् गीता से सीखने योग्य 10 अनमोल पाठ. इन पाठों को अपने जीवन में उतारकर हम एक बेहतर इंसान बन सकते हैं और जीवन को जीने का सही अर्थ समझ सकते हैं.
अंत में, एक श्लोक:
“गीता ज्ञानमयी शास्त्रं सर्वशास्त्रेषु श्रेष्ठम्। य इदं पठति नित्यं स भवेद्भगवान्मतम्।।”
अर्थात, गीता ज्ञान का सर्वश्रेष्ठ शास्त्र है. जो इसे नित्य पढ़ता है, वह भगवान का स्वरूप बन जाता है.